Monday, August 26, 2019

यशोदा छन्द


छंद : सुप्रतिष्ठा(पंचाक्षरावत्तिः) के अंतर्गत यशोदाछंद 

जिसे  सताए, उसे  नचाए
विकार  ऐसा, प्रमाद जैसा

        करो तपस्या, मिटे समस्या
        बनो भोगी, रहो रोगी

बिसार देना , उतार देना
अहं बुरा है, बड़ा छुरा है

        निकेत जोड़ो, घमण्ड छोड़ो
        सुजान जागो, दूर भागो

सुशील ज्ञानी, उदार दानी
सुकाज तेरे , रहें   घनेरे


~ अशोक कुमार रक्ताले 

Saturday, July 9, 2016


Haldwani

Ujjain

Kundaliya



बूँदे लेकर रसभरी , वसुधा को महकाय |
क्या है मन में मेघ के, कोई समझ न पाय ||
कोई समझ न पाय, किसे यह तर कर देगा,
कब तोड़ेगा आस, कहाँ जाकर बरसेगा,
नीरद करे निराश, न मन को सपने देकर,
बरसे रिमझिम नित्य, नृत्यरत बूँदे लेकर || 


बेसुध घन बरसा रहे, वहीँ अनवरत नीर |
जहाँ ह्रदय घायल पडा, सहता है नित पीर ||
सहता है नित पीर, विरह का पाला लेकर,
ख़ुशी गई है लौट , जिसे बस आँसू देकर,
उसे नहीं है काम, भिगोये क्योंकर वह तन,
छोडो उसका धाम, इसी क्षण ओ बेसुध घन ||

~ Ashok Kumar Raktale. 
       Ujjain (M.P.)
       09827256343. 

Monday, March 11, 2013

भारतीय सनातनी छन्द - मेरी कुछ रचनाएं!


कुंडलिया छंद


दिल्ली के दरबार में, चले न जन  का जोर,
बैठाए   खुद   आपने,  मन  के   काले   चोर/
मन   के काले चोर,  कर  रहे   भाषणबाजी,
लगता है यह शोर, नहीं अब  जनता राजी,
जन जन में आक्रोश,उड़ाते जब ये खिल्ली,
धर लो मन संकल्प,न जाएँ अब ये  दिल्ली//१//


दिल्ली    हांड़ी काठ की,  ताप   बढे  जर जाय,
शीत लहर   है देश में,  दिल्ली   तो   झुलसाय/
दिल्ली   तो  झुलसाय,  सुरक्षित   रही न नारी,
कौन हमें बतलाय  ,  कौन  सी  यह   बीमारी,
ले लो प्रण इस वर्ष ,  झौंक  दो  पूरी    सिल्ली,
होय न अब  दुष्कर्म ,  बार   दो  चाहे दिल्ली//२//

Saturday, March 6, 2010

उज्जैन मंदिर दर्शन!

उज्जैन एक ऐतिहासिक और धार्मिक नगरी है। यहाँ के मंदिर विश्व प्रसिद्ध हैं। जिसमे विशेष तौर पर यहाँ का महाकाल मंदिर, जो कि भगवान् शिव का मंदिर है और यह भारत भर के बारह ज्योतिर्लिंग में से एक है।
अवन्तिकायां विहितावतारं
 मुक्ति प्रदानाय च सज्जनानाम
अकालमृत्योः परिक्षणार्थ
 वन्दे महाकाल महासुरेशम् //
 अर्थात  अवन्तिका (उज्जैन) मे भक्तो को मोक्ष प्रदान करने और अकाल मृत्यु से बचाने के लिये जिनका अवतार हुआ है उन भगवान् महाकाल की मै वन्दना करता हूं/

 शिव पुराण की कोटि रूद्र संहिता के सोलहवे अध्याय में तृतीय ज्योतिर्लिंग भगवान महाकाल के संबंध में सूत जी द्वारा जिस कथा का वर्णन किया है उस के अनुसार अवन्ती नगरी(उज्जैन) में एक वेद कर्मरत ब्राह्मण प्रतिदिन पार्थिव शिवलिंग का पूजन करता था उन दिनों रमाल पर्वत पर दूषण नाम का राक्षस ब्रम्हाजी से प्राप्त वरदान के कारण सभी धर्मस्थलों के धार्मिक कार्य को बाधित करता था. उसने अवन्ती नगरी में भी ब्राम्हणों से धर्म कर्म के कार्य छोड़ देने को कहा नहीं मानने पर राक्षस की सेना ने उत्पात मचाना प्रारंभ कर दिया जन त्रस्त होकर भगवान शंकर की शरण में जाकर स्तुति करने लगे, तब ब्राम्हण जहां पार्थिव शिवलिंग का पूजन करता था वहां विशाल गड्डा होगया और भगवान शिव का विराट स्वरुप प्रकट हुआ उन्होंने भक्तों को आश्वस्त किया और एक हुँकार के साथ राक्षस और उसकी सेना को भस्म कर दिया. तत्पश्चात भक्तों से वरदान माँगने को कहा. अवन्तिका वासियों ने प्रार्थना की-

महाकाल महादेव ! दुष्ट दण्ड कर प्रभो
 मुक्ति प्रयच्छ  नः शम्भो  संसाराम्बुधितः शिवः
अत्रैव लोक रक्षार्थ स्थातव्यं हि त्वया शिव
स्वदर्श कान नरांशम्भो तारय त्वं सदा प्रभोः //
 अर्थात् हे महाकाल महादेव! दुष्टों को दंड देने वाले भगवान, हमें संसार सागर से मुक्ति प्रदान करें तथा जन रक्षा के निमित्त यहीं निवास करें, आपके इसी स्वरूप के दर्शन करने वाले मनुष्यों  का उद्धार करें.
 भक्तों की प्रार्थना से अभिभूत होकर भगवान महाकल वहीँ विराजित हुए तब से वे यहीं अवन्तिका(उज्जैन) में विराजित हैं.
(समाचार-पत्र दैनिक भास्कर से साभार)