छंद : सुप्रतिष्ठा(पंचाक्षरावत्तिः) के अंतर्गत “यशोदा” छंद
जिसे सताए, उसे नचाए ।
विकार ऐसा, प्रमाद जैसा ।।
करो तपस्या, मिटे समस्या ।
बनो न भोगी, रहो न रोगी ।।
बिसार देना , उतार देना ।
अहं बुरा है, बड़ा छुरा है ।।
निकेत जोड़ो, घमण्ड छोड़ो ।
सुजान जागो, न दूर भागो ।।
सुशील ज्ञानी, उदार दानी ।
सुकाज तेरे , रहें घनेरे ।।
~ अशोक कुमार रक्ताले